क्रांतिकारी और अद्भुत संत – कबीर
यह कबीर के संबंध में पहली बात समझ लेनी जरूरी है। वहां पांडित्य का कोई अर्थ नहीं है। कबीर खुद भी पंडित नहीं हैं। कहा है कबीर ने: मसि कागज छूयौ नहीं, कलम गही नहिं हाथ।’-कागज कलम से उनकी कोई पहचान नहीं है। ‘लिखा लिखी की है नहीं, देखा देखी बात’-कहा है कहीर ने। जो देखा है, वही कहा है। जो चखा है, वही कहा है। उधार नहीं है।
कबीर के वचन अनूठे हैं; झूठे जरा भी नहीं। और कबीर जैसा जगमगाता तारा मुश्किल से मिलता है।
संतों में कबीर के मुकाबले कोई और नहीं। सभी संत प्यारे और सुंदर हैं। सभी संत अद्भुत हैं; मगर कबीर अद्भुतों में भी अद्भुत हैं; बेजोड़ हैं।
कबीर की सबसे बड़ी अद्वितीयता तो यही है कि जरा भी उधार नहीं है। अपने ही स्वानुभव से कहा है। इसलिए रास्ता सीधा-साफ है; सुथरा है। और चूंकि कबीर पंडित नहीं है, इसलिए सिद्धांतों में उलझने का कोई उपाय भी नहीं था।
बड़े-बड़े शब्दों का उपयोग कबीर नहीं करते। छोट- छोटे शब्द हैं जीवन के-सब की समझ में आ सकें। लेकिन उन छोटे-छोटे शब्दों से ऐसा मंदिर चुना है कबीर ने कि ताजमहल फीका है।
जो एक बार कबीर के प्रेम में पड़ गया, फिर उसे कोई संत न जंचेगा। और अगर जंचेगा भी तो इसलिए कि कबीर की ही भनक सुनाई पड़ेगी। कबीर को जिसने, पहचाना, फिर वह शक्ल भूलेगी नहीं।
हजारों संत हुए हैं, लेकिन वे सब ऐसे लगते हैं, जैसे कबीर के प्रतिबिंब। कबीर ऐसे लगते हैं, जैसे मूल। उन्होंने भी जानकर ही कहा है, औरों ने भी जानकर ही कहा है-लेकिन कबीर के कहने का अंदाजे बयां, कहने का ढंग, कहने की मस्ती बड़ी बेजोड़ है। ऐसा अभय और ऐसा साहसी और ऐसा बगावती स्वर, किसी और का नहीं है।
कबीर क्रांतिकारी हैं। कबीर क्रांति की जगमगाती प्रतिमा हैं। ये कुछ दिन अब हम कबीर के साथ चलेंगे-फिर कबीर के साथ चलेंगे। कबीर को चुकाया भी नहीं जा सकता। कितना ही बोलो, कबीर पर बोलने को बाकी रह जाता है।
ओशो
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