Hindi Story,  Spritiual

पूर्वभव की स्मृति – ओशो

जीवन एक संगीत - हिंदी कहानी

अंग्रेजी में एक शब्द है: देजावुह। उसका अर्थ होता है: पूर्वभव की स्मृति का अचानक उठ आना। कभी-कभी तुम्हें भी देजावुह होता है।

 

कल रात ही एक युवा संन्यासी मुझसे बात कर रहा था। उसने बार-बार मुझे पत्र लिखे, वह बड़ा परेशान था। परेशानी होगी ही। उसे कई बार ऐसा लगता है यहां इन गैरिक वस्त्रधारी संन्यासियों के साथ उठते-बैठते-चलते कि जैसे पहले भी वह कभी ऐसी ही किसी स्थिति में रहा है–पहले कभी किसी जन्म में। इससे बड़ी बेचैनी भी हो जाती है। कभी-कभी तो कोई घटना उसे ऐसी लगती है कि बिलकुल फिर से दोहर रही है। तो बेचैनी स्वाभाविक है। और पश्चिम से आया युवक है तो बेचैनी और स्वाभाविक है। उसने बहुत बार मुझे लिखा। कल वह विदा होने को आया था, अब वह जा रहा है वापस, तो मुझसे पूछने लगा: आपने कभी कुछ कहा नहीं कि मैं क्या करूं? मुझे बार-बार ऐसा लगता है। तो उसे मैंने कहा कि देजावुह, यह पूर्वभव का स्मरण एक वास्तविकता है। बेचैन तो करेगी, क्योंकि इससे तर्क का कोई संबंध नहीं जुड़ता है।

 

हम यहां नये नहीं हैं, हम यहां प्राचीन हैं; सनातन से हैं। ऐसा कोई समय न था जब तुम न थे। ऐसा कोई समय न था जब मैं न था। ऐसा कोई समय न था, न ऐसा कोई कभी समय होगा जब तुम नहीं हो जाओगे। रहोगे, रहोगे, रहोगे। रूप बदलेंगे, ढंग बदलेंगे, शैलियां बदलेंगी–अस्तित्व शाश्वत है। जो शाश्वत है, वही सत्य है; शेष सत्य जो बदलता जाता है, वह तो केवल आवरण है। जैसे कोई वस्त्र बदल लेता है। तो रामकृष्ण ने मरते वक्त कहा: रोओ मत, क्योंकि मैं केवल वस्त्र बदल रहा हूं। और रमण ने मरते वक्त कहा–जब किसी ने पूछा कि आप कहां चले जाएंगे? आप कहां जा रहे हैं? हमें छोड़ कर कहां जा रहे हैं? तो उन्होंने कहा: बंद करो यह बकवास! मैं कहां जाऊंगा? मैं यहां था और यहीं रहूंगा। जाना कहां है! यही तो एकमात्र अस्तित्व है।

रूप बदलते हैं। बीज वृक्ष हो जाता है; वृक्ष बीज हो जाता है। गंगा सागर बन जाती है; सागर सूरज की किरणों से चढ़ कर मेघ बन जाता है, मेघ फिर गंगा में गिर जाता है। फिर गंगा सागर में गिर जाती है। मगर एक जल की बूंद भी कभी खोई नहीं है; जल उतना ही है जितना सदा से था। और एक भी आत्मा कहीं खोई नहीं है।

तो मैंने उस युवक को कहा: बिलकुल घबड़ाओ ना। हो सकता है, मेरे पास तुम कभी अतीत में न भी बैठे हो; यह हो सकता है, क्योंकि यह अनंत है जगत। यह हो सकता है कि मेरा तुमसे मिलना कभी न हुआ हो, लेकिन फिर भी यह बात पक्की है कि मेरे जैसे किसी आदमी से तुम्हारा मिलना हुआ होगा। तुमने किसी बुद्ध की आंखों में झांका होगा। तुम किसी सदगुरु के चरणों में बैठे होओगे। फिर वह कौन था, मोहम्मद था कि कृष्ण कि क्राइस्ट इससे कोई फर्क नहीं पड़ता; क्योंकि सदगुरुओं का स्वाद एक है और उनकी आंखों का दृश्य एक है।

तो कभी-कभी अगर तुम बुद्ध के साथ रहे हो ढाई हजार साल पहले, तो मेरे पास बैठे-बैठे एक क्षण को तुम अभिभूत हो जाओगे। एक क्षण को लगेगा: यह तो फिर वैसे ही कुछ हो रहा है, जैसे पहले हुआ है। एक क्षण को यहां से तुम विदा जाओगे और अतीत का दृश्य खुल जाएगा। कोई पर्दा जैसे पड़ा था। और अचानक तुम पाओगे: यह तो वही हो रहा है जो पहले हुआ। शायद कभी ऐसा भी हो सकता है कि मैं तुमसे जो शब्द कहूं, वे ही शब्द तुमसे बुद्ध ने भी कहे हों। और यह भी संभव है कि कभी तुम मेरे साथ भी रहे हो। सभी कुछ संभव है। इस जगत में असंभव कुछ भी नहीं है।

ओशो

 

दोस्तों अगर आपको ये पोस्ट पसंद आयी हो तो शेयर करना न भूले |

आप भी अपनी कोई कहानी ,ध्यान विधी हमे भेज सकते है या फिर GUEST POST सेक्शन मै डाल सकते है । अपनी कहानी पोस्ट करने क लिए ईमेल भी कर सकते है हम आपकी स्टोरी जीवन एक संगीत पर पोस्ट करेंगे । अपनी कहानी पोस्ट करने क लिए himanshurana.in@gmail.com पर ईमेल करे |

आप अपनी स्टोरी की फोटो भी क्लिक करके हमे भेज सकते है इस ईमेल पर : himanshurana.in@gmail.com

This site is using SEO Baclinks plugin created by Locco.Ro

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *