नानक ने परमात्मा को गा-गा कर पाया। गीतों से पटा है मार्ग नानक का
एक अंधेरी रात। भादों की अमावस। बादलों की गड़गड़ाहट। बीच-बीच में बिजली का चमकना। वर्षा के झोंके। गांव पूरा सोया हुआ। बस, नानक के गीत की गूंज।
रात देर तक वे गाते रहे। नानक की मां डरी। आधी रात से ज्यादा बीत गई। कोई तीन बजने को हुए। नानक के कमरे का दीया जलता है। बीच-बीच में गीत की आवाज आती है। नानक के द्वार पर नानक की मां ने दस्तक दी और कहा, बेटे! अब सो भी जाओ। रात करीब-करीब जाने को हो गई।
नानक चुप हुए। और तभी रात के अंधेरे में एक पपीहे ने जोर से कहा, पियू-पियू।
नानक ने कहा, सुनो मां! अभी पपीहा भी चुप नहीं हुआ। अपने प्यारे की पुकार कर रहा है, तो मैं कैसे चुप हो जाऊं? इस पपीहे से मेरी होड़ लगी है। जब तक यह गाता रहेगा, पुकारता रहेगा, मैं भी पुकारता रहूंगा। और इसका प्यारा तो बहुत पास है, मेरा प्यारा बहुत दूर है। जन्मों-जन्मों गाता रहूं तो ही उस तक पहुंच सकूंगा। रात और दिन का हिसाब नहीं रखा जा सकता है। नानक ने फिर गाना शुरू कर दिया।
नानक ने परमात्मा को गा-गा कर पाया। गीतों से पटा है मार्ग नानक का। इसलिए नानक की खोज बड़ी भिन्न है। पहली बात समझ लेनी जरूरी है कि नानक ने योग नहीं किया, तप नहीं किया, ध्यान नहीं किया। नानक ने सिर्फ गाया। और गा कर ही पा लिया। लेकिन गाया उन्होंने इतने पूरे प्राण से कि गीत ही ध्यान हो गया, गीत ही योग बन गया, गीत ही तप हो गया।
जब भी कोई समग्र प्राण से किसी भी कृत्य को करता है, वही कृत्य मार्ग बन जाता है। तुम ध्यान भी करो अधूरा-अधूरा, तो भी न पहुंच पाओगे। तुम पूरा-पूरा, पूरे हृदय से, तुम्हारी सारी समग्रता से, एक गीत भी गा दो, एक नृत्य भी कर लो, तो भी तुम पहुंच जाओगे। क्या तुम करते हो, यह सवाल नहीं। पूरी समग्रता से करते हो या अधूरे-अधूरे, यही सवाल है।
परमात्मा के रास्ते पर नानक के लिए गीत और फूल ही बिछे हैं। इसलिए उन्होंने जो भी कहा है, गा कर कहा है। बहुत मधुर है उनका मार्ग; रससिक्त! कल हम कबीर की बात कर रहे थे:
सुरत कलारी भई मतवारी, मधवा पी गई बिन तौले।
नानक वही हैं, जो मधवा को बिना तौले पी गए हैं। फिर जीवन भर गाते रहे। ये गीत साधारण गायक के नहीं हैं। ये गीत उसके हैं जिसने जाना है। इन गीतों में सत्य की भनक, इन गीतों में परमात्मा का प्रतिबिंब है।
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