प्रेम का अर्थ – ओशो
प्रेम सौ बिमारियों का एक ईलाज है ,
बस प्रेम मे डूबो ,प्रेम में डूबो ,और प्रेम में ही डूबो।
तुम कुछ मत करो, सिर्फ प्रेम कर लो..
प्रेम का सार सूत्र क्या है–
कि जो तुम अपने लिए चाहते हो वही तुम दूसरे के लिए करने लगो और जो तुम अपने लिए नहीं चाहते वह तुम दूसरे के साथ मत करो।
प्रेम का अर्थ यह है
कि दूसरे को तुम अपने जैसा देखो, आत्मवत। एक व्यक्ति भी तुम्हें अपने जैसा दिखाई पड़ने लगे तो तुम्हारे जीवन में झरोखा खुल गया।फिर यह झरोखा बड़ा होता जाता है। एक ऐसी घड़ी आती है कि सारे अस्तित्व के साथ तुम ऐसे ही व्यवहार करते हो जैसे तुम अपने साथ करना चाहोगे।
और जब तुम सारे अस्तित्व के साथ ऐसा व्यवहार करते हो जैसे
अस्तित्व तुम्हारा ही फैलाव है तो सारा अस्तित्व भी तुम्हारे
साथ वैसा ही व्यवहार करता है। तुम जो देते हो वही तुम पर लौट आता है। तुम थोड़ा सा प्रेम देते हो, हजार गुना होकर तुम पर बरस जाता है। तुम थोड़ा सा मुस्कुराते हो, सारा जगत तुम्हारे साथ मुस्कुराता है।
कहावत है
कि रोओ तो अकेले रोओगे, हंसो तो सारा अस्तित्व तुम्हारे साथ हंसता है।बड़ी ठीक कहावत है। रोने में कोई साथी नहीं है।
क्योंकि अस्तित्व रोना जानता ही नहीं। अस्तित्व केवल उत्सव जानता है। उसका कसूर भी नहीं है।
रोओ–अकेले रोओगे। हंसो–फूल, पहाड़, पत्थर, चांदत्तारे,
सभी तुम्हारे साथ तुम हंसते हुए पाओगे। रोने वाला अकेला रह जाता है। हंसने वाले के लिए सभी साथी हो जाते हैं, सारा अस्तित्व सम्मिलित हो जाता है।
प्रेम तुम्हें हंसा देगा। प्रेम तुम्हें एक ऐसी मुस्कुराहट देगा जो बनी ही रहती है, जो एक गहरी मिठास की तरह तुम्हारे रोएं-रोएं
में फैल जाती है। प्रेम काफी नियम है।
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