ओशो के विचार
अस्तित्व ने तुम्हारे भीतर कोई बहुत बड़ा कृत्य पूरा करना चाहा है। तुम्हारे भीतर कोई बहुत बड़ी घटना को घटाने का आयोजन किया है। जब तक तुम सहयोग न दोगे! खिल न पाओगे, नियति तुम्हारी पूरी न होगी। समस्त ज्ञानी पुरुष कहते हैं तुम वापिस भेज दिये जाओगे। यह जीवन और मरण का चक्र चलता रहेगा! इससे केवल वे ही बाहर निकल पाते हैं जो इस जीवन और मरण के चक्र में चलते हुए भी अपने भीतर के सारे विचारों के चक्र को रोक देते हैं। जो इस जीवन-मरण के चक्र में रहते हुए भी, साक्षी हो जाते हैं! और एक गहन अर्थ में बाहर हो जाते हैं। साक्षी होकर जो बाहर हो गया संसार से, उसको फिर दुबारा लौटने की कोई जरूरत न रहेगी। और जो दुबारा नहीं लौटता, उसने ही अपनी नियति को पूरा किया। उसके भीतर के ही बीज! फूल को उपलब्ध हुए।
इस अवस्था को महावीर कहते हैं! परमात्म अवस्था! तुम परमात्मा होने को हो! इससे कम पर राजी मत होना। इससे जो कम पर राजी हुआ वह नासमझ है। तुम कंकड़-पत्थरों से राजी मत हो जाना। हीरों की अनंत राशियां तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही हैं !!