Gurdjieff
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गुर्जिएफ़्फ़ सिस्टम के नियम जिन्हे जानकर आप आचार्यचकित हो जाएगे

जीवन एक संगीत - हिंदी कहानी

दोस्तों आज हम आपको बताने जा रहे है गुर्जिएफ़्फ़ सिस्टम के नियम जिन्हे जानकर आप आचार्यचकित हो जाएगे|

गुरजिएफ का कहेना है की…..

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प्रकृति ने मनुष्य को एक निश्चित बिंदु तक विकसीत किया है… या प्रकृती ने अपनी आवश्यकता पर मनुष्य निर्भर रहे वंहा तक उसे विकसित किया है… . इस प्रकृती के ऊपर, यदि मनुष्य उठना चाहता है,…तो, खुद अपने ऊपर काम करना पडेगा. …मनुष्य के पास खुद को विकसित करने की असीम शक्ति और संभावना है. लेकिन मनुष्य का यह यंत्रवत् ( mechanical ) जीवन से कुछ भी संभव नहीं है . हम नींद में विकास नहीं कर सकते. , होशपूर्वक और ध्यान पूर्वक प्रयास आवश्यक हैं.
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प्रकृति के नियम के अनुसार, मानव जाति के विकास की प्रकृति को आवश्यकता नहीं है . कुछ बिंदु तक ठीक है, लेकिन उसके ऊपर ज्यादा विकास प्रकृती के हिसाब से आवश्यक नहीं है, और ये विकास प्रकृती विपरीत, यानि यह प्रकृति के विरुद्ध भी है . असल में प्रकृति मानव जाति का विकास नहीं चाहती है, प्रकृती के हिसाब से मानव जाति का विकास और पृथ्वी का विकास साथ साथ में होना चाहिए…अगर मनुष्य का विकास पृथ्वी के विकास से ज्यादा हो गया तो ये , ये पृथ्वी रूपी ग्रह ( ,Our planate ) का विनाश हो सकता है. और प्रकृति के हिसाब से ग्रह ( ,Planatery world ) का विकास अनंत समय के चक्र में होता है.
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. अभी अभी कुछ वैज्ञानिक को विश्वास है कि धीरे – धीरे मानव , प्रकृति पर विजय प्राप्त कर लेगा, वैज्ञानिको ने वचन दिया था की, हम लोग मनुष्य के काम के घंटे कम कर देन्गे, मनुष्य की जिन्दगी ज्यादा आरामदाई बना देंगे, लेकिन…STATISTICS बताता है, की जो मनुष्य को साल में 1950 में 177 दिन काम करना पड़ता था, लेकिन अब 2017 में जीवन निर्वाह के लिए 199 दीन काम करना पड़ता है…
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गुर्जिएफ़्फ़ कहेता है की हम समजते है की, हम प्रकृति का उपियोग करते है, हकीकत में प्रकृति हमारा उपियोग करता है…हम प्रकृति से ऊपर उठ सकते है, लेकिन प्रकृति ऊपर विजय प्राप्त नहीं कर सकते…
मनुष्यों , प्रकृति के नियमों से कभी नहीं बच सकता है. और सभी मनुष्य एक साथ विकास नहीं कर सकते, और अगर विकास करे तो ये पृथ्वी का विनाश नक्की हो स्क़कता है…
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सभी मनुष्य का एक साथ विकास, हो , सब एक साथ ध्यानी बने वह प्रकृति नहीं चाहती है…. मनुष्य के एक बहोत ही छोटे प्रतिशत का विकास और निर्माण हो सकता है. अगर प्रकृति के द्वारा अनुमति हो तो मनुष्य की एक व्यक्ति के रूप में ( individual ) विकास की संभावना है. लेकिन सम्पूर्ण मानव जाति का एक साथ विकास और ध्यान में जाने की कोई भी संभावना नहीं है.
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और गुरजिएफ का कहेना है, की , यह आवश्यक भी नहीं है. गुरजिएफ का कहेना है की अगर अचानक सम्पूर्ण मानव जाति जाग जाए ( become intellgent ) या बुद्ध बन जाए , तो ये विकास , इस ग्रह के लिए घातक ( fatal ) या हानिकारक हो सकता है. इसलिए बड़े पैमाने पर पूरे मनुष्य के विकास को रोकने के लिए प्रकृति का एक विशेष रूप से सक्रिय है …..
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इतना ही नहीं, अगर सभी मनुष्यों का , विकास एक सीमा के ऊपर चला जाता है, तो यह चाँद के लिए भी घातक खतरा है , क्यूँकी पृथ्वी चन्द्र का खुराक-भोजन है
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लेकिन सौभाग्य से, व्यक्तिगत इंसान ( individual ) ही विकास -possible- है. अगर एक व्यक्ती को प्रोपर शिक्षक , स्कूल , जानकारी , मिले तो वह प्रयास और ध्यान करके पूर्ण होश को पा सकता है…. लेकिन फिर भी, मनुष्य को अपने ऊपर कार्य करने के लिए, ध्यान करने के लिए,… एक ग्रुप और स्कुल का थोड़े समय तक जरुर पड सकता है…, इसका मतलब, व्यक्ति को ग्रुप में रहकर, ग्रुप से तादात्म्य (Identification ) किये बिना , खुद के उपर कार्य करे तो जागने की पूरी संभावना है.

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