
अहंकार को मारने का उपाय – ओशो
इसे खूब गहराई में पकड़ लो, क्योंकि यही चाबी है, जो लगती है। अहंकार अगर हो, तो क्रोध पैदा होता है। अहंकार अगर हो, तो मोह पैदा होता है। अहंकार अगर हो, तो लोभ पैदा होता है। अहंकार न हो, तो कैसे क्रोधित होओगे? कोई गाली देगा, तुम सुन लोगे। तुम तक वे पहुंचेंगी ही नहीं। तुम्हारे भीतर अहंकार का घाव न हो, तो गाली चोट किसे करेगी?
अहंकार मूल पाप है। बाकी सारे पाप उसकी छायायें हैं। किसके लिए तुम लोभ करते हो?
किसके लिए तुम चीजों को इकट्ठा करके पागल हुए जा रहे हो? किसके लिए पद, सिंहासन चाहते हो?
लेकिन बड़े मजे की बात है कि लोग लोभ को छोड़ने की कोशिश करते हैं। क्रोध भी छोड़ने की कोशिश करते हैं। मोह को भी छोड़ने की कोशिश करते हैं। बिना यह समझे, कि ये छोड़े नहीं जा सकते। यह ऐसे ही है, जैसे कोई आदमी अपनी छाया को छोड़ने की कोशिश कर रहा हो। अहंकार के रहते ये कोई भी छूट नहीं सकते। यह हो सकता है कि तुम धोखा दे लो, कि मैंने लोभ छोड़ दिया। लेकिन लोभ नये रूप लेकर रहेगा। छाया का रंग बदल जायेगा, लेकिन छाया रहेगी। दिखाई भी न पड़े,
तो भी रहेगी। क्योंकि छाया तुम्हारे साथ जुड़ी है।
अगर तुमने लोभ छोड़ा अहंकार को बचा कर, तो तुम्हारे अलोभ में भी अहंकार खड़ा हो जायेगा। देखो त्यागी को, वह त्याग से अकड़ा हुआ है–कि मैंने सब छोड़ दिया। देखो निरहंकारी को, जो कहता है मैं विनम्र हूं। विनम्रता ही उसका अहंकार बन गई है। अगर तुम उससे कह दो कि हमारे गांव में तुमसे भी ज्यादा विनम्र एक आदमी है, तो उसको वैसी ही चोट लग जाती है, जैसे तुम किसी से कह दो, हमारे गांव में तुमसे भी बड़ा आदमी है। विनम्रता की भी होड़ है। होड़ तो सिर्फ अहंकार की होती है। विनम्रता की क्या होड़ होगी!
तुम झुकोगे भी, तो तुम्हारे झुकने में भी तरकीब होगी। वह भी खालिस शुद्ध नहीं होगा। अहंकार पीछे खड़ा देखता रहेगा, कि लोगों ने देख लिया न कि मैं झुका? कि मैं कैसा विनम्र आदमी हूं! कि मुझसे ज्यादा विनम्र कौन है?
नहीं; न तो क्रोध, न लोभ, न मोह, इनसे तुम सीधे मत लड़ना। इसलिए मैं निरंतर कहता हूं कि तुम्हारी लड़ाई सिर्फ एक है–अहंकार। और अहंकार को मारने का एक ही उपाय है–ध्यान। क्योंकि जैसे-जैसे तुम ध्यानस्थ होते हो, अहंकार तिरोहित होने लगता है। अहंकार बच सकता है गैर ध्यान की अवस्था में। जितने तुम मूर्च्छित हो, उतना ज्यादा अहंकार। जितने तुम होश से भरोगे, उतना कम अहंकार। जिस दिन तुम पूरे होश से भर जाओगे, उस दिन अहंकार खो जाता है। अगर अहंकार को मिटाना हो, तो जागना। ज्यादा होशपूर्वक जीना। उठते-बैठते ध्यान को साधना। चलते-फिरते भीतर होश बना रहे, खोये न। नींद में मत चलना। मूर्च्छित जीवन को मत चलने देना। जो भी करो,
जानते हुए करना।
और तुम चकित हो जाओगे। कभी तुमने जानते हुए क्रोध किया? तुम कर ही न पाओगे। जैसे ही तुम जागोगे, क्रोध का सिलसिला टूट जायेगा। ठीक बीच में जाग जाओगे, तो क्रोध वहीं रुक जायेगा। क्योंकि क्रोध को चलने के लिए मूर्च्छा चाहिए। तुमने कभी देखा कि कामवासना में भरे हुए अगर तुम जाग जाओगे, काम-वासना रुक जायेगी। काम-वासना के लिए मूर्च्छा चाहिए।
होश जितना गहरा चला जायेगा उतने ही पाप तिरोहित हो जायेंगे। मूर्च्छा अहंकार की जननी है। अमूर्च्छा निरहंकार को ले आती है।
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