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जिस दिन ह्रदय – चक्र पर आएगी तुम्हारी ऊर्जा, तुम पाअोगे, भर गये तुम प्रेम से

जीवन एक संगीत - हिंदी कहानी

जिस दिन ह्रदय – चक्र पर आएगी तुम्हारी ऊर्जा, तुम पाअोगे, भर गये तुम प्रेम से |
तुम जहाँ भी उठोगे, बैठोगे,
तुम्हारे चारों तरफ एक हवा बहने लगेगी प्रेम की |
दूसरे लोग भी अनुभव करेंगे कि तुममें कुछ बदल गया,
तुम अब वही नहीं हो…
तुम कोई और ही तरंग लेकर आये हो |
तुम्हारे साथ कुछ और ही लहर आती है कि उदास प्रसन्न हो जाता है…
कि दुखी थोड़ी देर को दुख भूल जाता है…
कि अशांत शांत हो जाता है…
कि तुम जहाँ छू देते हो , जिसे छू देते हो, उस पर ही एक छोटी सी प्रेम की बरसात हो जाती है।

लेकिन, ह्रदय में ऊर्जा आएगी, तभी यह होगा |
ऊर्जा जब बढ़ेगी – – ह्रदय से कंठ में आएगी – –
तब तुम्हारी वाणी में एक माधुर्य आ जाएगा |
जब तुम्हारी वाणी में एक संगीत, एक सौंदर्य आ जाएगा, तुम सधारण से शब्द बोलोगे और उन शब्दों में काव्य होगा |
दो शब्द किसी से कह दोगे और उसे तुम तृप्त कर दोगे |
तुम चुप भी रहोगे, तो तुम्हारे मौन में भी
सन्देश छिप जाएंगे |
तुम न भी बोलोगे , तुम्हारा अस्तित्व बोलेगा |
ऊर्जा कंठ पर आ गई |
ऊर्जा ऊपर उठती जाती है, एक घड़ी आती है कि तुम्हारे तीसरे नेत्र पर ऊर्जा का आविभार्व होता है।
तब तुम्हें पहली बार दिखाई पड़ना शुरू होता है – – तुम अंधे नहीं होते |उसके पहले तुम अंधे हो | क्योंकि उसके पहले तुम्हें सिर्फ आकार दिखाई पड़ते हैं, निरकार नहीं दिखाई पड़ता, और वही असली में है |

ऊर्जा जब तीसरी – आँख में प्रवेश करती है, तो अनुभव शुरू होता है।
और ऐसे व्यकति के वचनों में तर्क का बल नहीं होता, सत्य का बल होता है। ऐसे व्यकति के वचनों में एक प्रमाणिकता होती है, जो वचनों के भीतर से आती है – किन्हीं प्रमाणों के आधार पर नहीं |
ऐसे व्यकति के वचन को ही हम शास्त्र कहते हैं |
ऐसे व्यकति के वचन वेद बन जाते हैं – – जिसने जाना है , जिसने जीया है,
जिसने परमात्मा को चखा है – पीया है ; जिसने परमात्मा को पचाया है |
जो परमात्मा के साथ एक हो गया है |

फिर ऊर्जा और ऊपर जाती है – सहस्रार को छूती है |
पहला, सबसे नीचे का है, ‘ मूलाधार ‘ , और सबसे अंतिम है ‘ सहस्रार ‘ |
उसे हम सहस्रर कहते हैं – आखिरी चक्र को, क्योंकि वह ऐसा है – – जैसे सहस्र पंखुड़ियों वाला कमल हो |
बड़ा सुन्दर है |
और जब खिलता है तो भीतर एेसी ही प्रतिति होती है, जैसे पूरा
व्यकतित्व सहस्र पंखुड़ियों वाला कमल हो गया, पूरा
व्यकतित्व खिल गया |
जब ऊर्जा टकराती है, सहस्रर से, तो उसकी पंखुड़ियां
खिलनी शुरू हो जाती हैं |
सहस्रर के खिलते ही व्यकतित्व से आनंद का झरना बहने लगता है |

मीरा उसी श्रण नाचने लगती है |
पद घूँघरू बाँध मीरा नाची |
उसी श्रण चैतन्य महाप्रभू पागलों की तरह
उन्मत्त होकर नाचने लगते हैं |
उसी श्रण चेतना तो नाचती ही है,,शरीर का रोयां – रोयां
भी आनांदित हो उठता है |

 

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