एक फ़क़ीर और धन कुबेर की रोचक कहानी
एक आदमी के पास बहुत धन था।
इतना कि अब और धन पाने से कुछ सार नहीं था।
जितना था, उसका भी उपयोग नहीं हो रहा था।
मौत करीब आने लगी थी।
न बेटे थे, न बेटियां थीं, कोई पीछे न था।
और जीवन धन बटोरने में बीत गया।
गया वह तथाकथित महात्माओं के पास,
कि मुझे कुछ आनंद का सूत्र दो।
महात्मा, पंडित, पुरोहित,
सब के द्वार खटखटाए।
खाली हाथ गया, खाली हाथ लौटा।
फिर किसी ने कहा कि एक सूफी
फकीर को हम जानते हैं,
शायद वही कुछ कर सके।
उसके ढंग जरूर अनूठे हैं;
इसलिए चौंकना मत।
उसके रास्ते उसके निजी हैं;
उसकी समझाने की विधियां
भी थोड़ी बेढब होती हैं।
मगर अगर कोई न समझा सके,
तो जिनका कहीं कोई इलाज नहीं है,
उस तरह के लोगों को हम वहां भेज देते हैं।
रहा होगा फकीर मेरे जैसा।
जिनका कहीं कोई इलाज नहीं,
उनके लिए सुनिश्चित यहां उपाय है।
उस धनी ने एक बड़ी झोली भरी
हीरे—जवाहरातों से और गया फकीर के पास।
फकीर बैठा था एक झाड़ के नीचे।
पटक दी उसने झोली उसके सामने और
कहा कि इतने हीरे—जवाहरात मेरे पास हैं,
मगर सुख का कण भी मेरे पास नहीं।
मैं कैसे सुखी होऊं?
फकीर ने आव देखा न ताव,
उठाई झोली और भागा! वह
आदमी तो एक क्षण समझ ही
नहीं पाया कि यह क्या हो रहा है।
महात्मागण ऐसा नहीं करते!
एक क्षण तो ठिठका रहा,
अवाक! फिर उसे होश आया
कि इस आदमी ने तो लूट लिया,
मारे गए, सारी जिंदगी भर की कमाई ले भागा।
हम सुख की तलाश में आए थे,
और दुःखी हो गए। भागा,
चिल्लाया कि लुट गया, बचाओ!
चोर है, बेईमान है, भागा जा रहा है!
पूरे गांव में उस फकीर ने चक्कर लगवाया।
फकीर का गांव तो जाना—माना था,
गली—कूंचे से पहचान थी, इधर से निकले,
उधर से निकल जाए। भीड़ भी पीछे हो ली—
भीड़ तो फकीर को जानती थी!
कि जरूर होगी कोई विधि!
गांव तो फकीर से परिचित था,
उसके ढंगों से परिचित था।
धीरे—धीरे आश्वस्त हो गया था
कि वह जो भी करे, वह चाहे
कितना बेबूझ मालूम पड़े,
भीतर कुछ राज होता है।
लेकिन उस आदमी को तो कुछ पता नहीं था।
वह पसीना—पसीना, कभी
भागा भी नहीं था जिंदगी में इतना,
थका—मांदा, फकीर उसे भगाता हुआ,
दौड़ाता हुआ, पसीने से लथपथ करता
हुआ वापिस अपने झाड़ के पास लौट आया।
जहां उसका घोड़ा खड़ा था।
लाकर उसने थैली वहीं पटक दी
झाड़ के पीछे छिप कर खड़ा हो गया।
वह आदमी लौटा;
झोला पड़ा था,
घोड़ा खड़ा था; उसने झोला
उठा कर छाती से लगा लिया
और कहा कि हे परवरदिगार!
हे परमात्मा! तेरा शुक्र है!
तेरा धन्यवाद!
आज मुझ जैसा प्रसन्न
इस दुनिया में कोई भी नहीं!
फकीर झांका वृक्ष के
उस तरफ से और बोला,
कहा : कुछ सुख मिला? यही राज है।
यही झोली तुम्हारे पास थी,
इसी को लिए तुम फिर रहे थे,
और सुख का कोई पता नहीं था।
यही झोली वापिस तुम्हारे हाथ में है,
लेकिन बीच में फासला हो गया,
थोड़ी देर को झोली तुम्हारे हाथ में न थी,
थोड़ी देर को झोली से तुम वंचित हो गए थे,
अब तुम कह रहे हो—शर्म नहीं आती?—
कि हे प्रभु, धन्यवाद तेरा कि आज
मैं आह्लादित हूं, आज पहली दफा
आनंद की थोड़ी झलक मिली।
बैठो घोड़े पर और भाग जाओ,
नहीं तो मैं झोली फिर छीन लूंगा।
रास्ते पर लगो! रास्ता तुम्हें मैंने बता दिया।
लोग ऐसे हैं।
लोग ही नहीं, सारा अस्तित्व ऐसा है।
हम जिसे गंवाते हैं, उसका मूल्य पता चलता है।
जब तक गंवाते नहीं तब तक मूल्य पता नहीं
चलता। जो तुम्हें मिला है,
उसकी तुम्हें दो कौड़ी कीमत नहीं है।
जो खो गया, उसके लिए तुम रोते हो।
जो खो गया, उसका अभाव खलता है।
जिंदगी तुम्हें मिली है
और तुमने परमात्मा को धन्यवाद नहीं दिया।
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