ऐसी क्या बात थी बुद्ध में कि आज असंख्य लोग उनकी वंदना करते हैं
बुद्ध कितने सरल दिखते हैं,
तन पर एक मात्र वस्त्र, हाथ में एक मात्र भिक्षापात्र।
पर ऐसी क्या बात थी उनमें कि आज असंख्य लोग उनकी वंदना करते हैं।
असंख्य लोग उनके पथ का अभ्यास करते हैं।
ऐसी क्या बात थी उनमें,कि “बिम्बिसार, अजातशत्रु, प्रसेनजीत” जैसे महान सम्राट, बुद्ध की शरण मेंं गए।
ऐसी क्या बात थी उनमें, की विश्व के एक मात्र चक्रवर्ती महान सम्राट अशोक बुद्ध की शरण में गए।
ऐसी क्या बात थी उनमें, कि बुद्ध काल के 61 दर्शन बुद्ध दर्शन में समाहित हो गए ,
ऐसी क्या बात थी उनमें, कि चक्रवर्ती महान सम्राट अशोक और अन्य राजाओं के प्रचार से, श्रीलंका, थाईलैंड , इंडोनेशिया, लाओस, चीन, तिब्बत, भूटान, मंगोलिया, ग्रीक, कोरिया , म्यांमार, जापान, जैसे कई देश बौद्ध हो गए।
ऐसी क्या बात थी उनमें, कि भारत ने राष्ट्रपति भवन में एकमात्र ऐतिहासिक गौतम बुद्ध की प्रतिमा लगाना उचित समझा।
ऐसी क्या बात थी उनमें, कि भारत ने भारतीय ध्वज में “धम्मचक्र” को विशेष स्थान दिया।
ऐसी क्या बात थी उनमें, कि नालंदा , विक्रमशीला, ओदंतपुरी, सोमपुरा, सिरपुर जैसे महान विश्विद्यालय , उनके ज्ञान की नींव पर बनें।
बुद्ध उसे कहते हैं, जो पूर्णतः जाग गया हो, जिसकी तृष्णा द्वेष ईर्ष्या, खत्म हो गई हो, जो पूर्णतः मुक्त हों, जिसके सारे संखार खत्म हो गए हों…. अर्थात जो किसी फूल के खिलने को भी उसी प्रकार देखता हो जैसे किसी बच्चे के जन्म को, और जो किसी पत्ते के झड़ने को भी वैसे ही देखता हो, जैसे अपने माता की मृत्यु को, जो सुंदर -असुंदर को एक सा देखता हो,
जो पूर्णतः मध्य में आ गया हो,जिसकी करुणा सभी जीव-निर्जीव के लिए बराबर हो,सरल शब्दों में कहा जाए, तो उन्होंने # सत्य को कड़वा नहीं बल्कि # मीठा बताया, जस का तस बताया ,
उन्होंने , ये तो बताया कि संसार दुख और पीड़ा से भरा पड़ा है, पर ये भी बताया कि इस दुख और पीड़ा को समाप्त किया जा सकता है,
उन्होंने ये भी बताया, की कैसी दो भाइयों के बीच सुलह की जाए , और ये भी बताया कैसी दो देशों के बीच सुलह की जाए,
उन्होनें, एक गरीब का भी दुख समझा और एक अमीर का भी,
उनका मार्ग सभी अंतर को खत्म करने वाला है,
उनका मार्ग दुःखमुक्ति का है , शांति का है,
इसलिए आज भी प्रासंगिक है,
बुद्ध दर्शन अनुभूति(experience) पर टिका हुआ है, बुद्ध कलाम सुत्त में कहते है, (जो 84000 सुत्तों में से मेरा पसंदीदा सुत्त है) कि किसी बात को इसलिए मत मान लो कि, वो किसी पवित्र पुस्तक में लिखी है,न ही इसलिए की उसे बहुत लोग मानते हो, न ही इसलिए की उसे कोई गुरु कह रहें है, न ही इसलिए कि स्वयं “बुद्ध” उसे कह रहे है, बल्कि स्वयं जांचों, उसका अनुभव करो, और जब स्वंय के लिए और संसार के लिए प्रासंगिक हो तो ही मानो.
यही सुत्त बुद्धिज़्म को विज्ञान से जोड़ देता है,
और इसी आधार पे बुद्धिज़्म को वैज्ञानिक भी कहा जाता है,
वर्तमान में जल रही धरती को युद्ध की नहीं बुद्ध की आव्यशकता है
तुम स्वयं की शरण में जाना किसी और की नही…
अत्त दीप भव
अपना दीपक स्वयं बनो…
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