हमारी भौतिक देह के साथ और छह काया जुड़ी हुई है
वास्तव में हमारी भौतिक देह के साथ और छह काया जुड़ी हुई है।
उसमें से जो तीसरा शरीर जो है वह शूक्ष्म शरीर है।
महावीर कहते थे,”वह जो सूक्ष्म शरीर है उस मे सूखी रेखाए बन जाती है उसकी ,जो कर्म हमने किए है,जो फल हमने भोगे है,वह जो हम जिए है।इसलिए उसका नाम-कार्मण शरीर भी है।”
तो महावीर का बहुत स्पष्ट ख्याल है कि जो भी हमने जिया और भोगा उसके भोग के कारण विशेष प्रकार के परमाणु हमारे सूक्ष्म शरीर के साथ जुड़ जाते है।इसलिए इस शरीर के मिट जाने पर उस सूखी रेखा को लेकर सूक्ष्म शरीर नई यात्रा शरू करता है।और वह जो सूक्ष्म शरीर है वह नए जन्मो को ग्रहण करता है।
प्रत्येक मृत्यु में स्थूल देह मरती है। अंतिम मृत्यु में जिसे हम महामृत्यु या मोक्ष कहते है उसमें सूक्ष्म शरीर मर जाता है।
यह शरीर तो हर बार मरता है।वह भीतर का शरीर हर बार नही मरता।वह तब मरता है-जब उसके रहने का कोई अर्थ न रहे जाए।जब व्यक्ति न कुछ करता है, नकुछ भोगता है,न कर्ता बनता है, न किसी कर्म को ऊपर लेता है,न प्रतिकिया करता है।। जब व्यक्ति सिर्फ साक्षी रह जाता हैं, तब उसका सूक्ष्म शरीर पिघलने लगता है।
साक्षी की जो प्रक्रिया है,वह सूक्ष्म शरीर को ऐसे पिघला देती है ,जैसे सूरज निकले और बर्फ पिघलने लगे।साक्षी के निकलते ही सूक्ष्म शरीर के परमाणु पिगल कर बहने लगते है।और जिस दिन सूक्ष्म शरीर पिगल जाता है,आत्मा और शरीर बिलकुल पृथक दिखाई पड़ने लगते है।सूक्ष्म शरीर जोड़ है।वह पृथक नही दिखाई देने देता।वह दोनों को जोड़कर रखता है। उस सूक्ष्म शरीर को गलाना ही साधना है।तपश्चर्या का अर्थ ही यही है कि सूक्ष्म शरीर को गलाना है।
और तप शब्द का उपयोग इसलिए करते है कि तप का मतलब होता है, तीव्र गर्मी,जैसे सूर्य की गर्मी। ऐसी गर्मी भीतर साक्षी पैदा करती है कि सूक्ष्म शरीर पिघल जाये,गल जाए। तप का मतलब धूप में खड़ा रहना नही है।
तो उस काया को पिघलाने में जो श्रम है वही तपश्चर्या और जो प्रक्रिया है,वही साक्षीभाव,सामायिक या ध्यान है।और उस प्रयोग से जो गुजर जाए तो उसके लिए कोई पुनर्जन्म नही।जब पुनर्जन्म न हो तो हम विराट जीवन के साथ जुड़ जाते है।ऐसा नही कि हम मिट जाते है,बस ऐसा ही जैसे बूंद सागर हो जाती है।बूँद की तरह मिट जाती है सागर की तरह रह जाती है।
इसलिए महावीर कहते है, आत्मा ही
परमात्मा हो जाती है।इसका मतलब आत्मा की बूंद खो जाती है, उसमे जो परमात्मा है वह एक हो जाती है। उस एकता में,उस परम अद्वैत में परम् आनंद है,परम् शांति है,परम् सौंदर्य है।
महावीर मेरी दृष्टि में,
ओशो
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