ध्यान में उतरने से पहले ये जरूर करे |
क्या अापने कभी खुले मष्तिष्क से यह देखने की कोशिश की है कि,क्यूं सारी दुनिया भाग रही है?अगर अाज कोई जिज्ञासू खुले दिमाग से सोचकर देखने की कोशिष करेगा…तो जीवन की biology को देखेगा तो अाश्चर्य चकित होगा अाज थोडा सा हमारे संकुचित mind को अलग कर थोडासा दूर रखते है| और अाज विज्ञान को,.मेडिकल सायन्स को…विज्ञान की टेक्नाॅलाॅजी को बीच मे रखकर थोडासा विशाल दृस्टी से सोचने की कोशिश करते हैं।
अब हम देखते है…क्यूं सब भाग रहे है?अाज हमे लग सकता है कि शायद दूसरे लोग भाग रहे है इसलिए मै भी भाग रहा हूं।..कभी लगता है कि घर परिवार की जिम्मेवारी मुझे भगा रही है।मगर कभी पंधरा दिन की छूट्टी लेकर सिर्फ अकेले ही कही घुमने जाओ हर छह महिने मे एकबार अगर एक महिना या पंद्रह दिन की छूट्टी पर जायेंगे तो कुछ सवाल हमारा मन स्वयं से पूछने लगेग।
मै इस धरती पर क्यूं हूंयह भागदौड जीवन मे क्यूं है| क्या मै कभी अकेले स्वयं के साथ रह सकता हूं|तब हमे कुछ जवाब भीतर से ही मिलने लगेंगे यह सब अाखिर मृत्यू तक ही चलेगा ना?मेरे जाने के बाद तो दुनिया वही रहेगी..पंछी वही चहकेंगे|वही सवेरा होगा सबकुछ वही रहेगा बस्ससस मै नही रहूंगा तब भीतर से लगेगा की मेरी जिम्मेवारी मुझे दौडाती है मगर मृत्यू मे कौन साथ होगा?वहां तो एक गहन अंधकार धीरे धीरे शरीर को घेरे रहेगा भीतर कोई साथी नही अंधेरा ही साथी और बस निपट अकेलापन भाषा भी बंद…किसीको बता भी नही सकते कि मै भितर क्या महसूस कर पा रहा हूं…निकट ही सब होंगे…मगर मै कीसीको पुकार भी नही पाऊंगा..बोलना बंद..मजबूरी….सबके बीच यह अकेलापन…भीतर कुछ खिंच रहा है…डर भी है..पहला अनुभव है मृत्यू का जीवन मे पहली बार..,भीतर मै तो हूं..,मै जान रहा हूं,..शरीर की तरफ से धीरे धीरे सब कुछ…ठंडा पड रहा है..अब पैर भी नही उठा सकता..अब कमर तक सब ठंडा हो गया..अब ये देखो..कंधे तक सब शरीर का व्यापार बंद.,सब कुछ ठंडा..एक अंधेरे ने घेर लिया है…अब बस गले तक अा गयी ये अवस्था..अब सब खत्म ही होनेवाला है..थोडी ही देर मे मै दुनिया से..शरीर से विदा हो जाऊंगा…मगर अाश्चर्य..??मै फिर भी भीतर पूरा का पूरा हूं..मै जान रहा हूं…की मै तो हूं….कमाल है…अब शरीर नष्ट हो रहा है,.और मै भीतर पूरा हूं…..अब दुनिया की अाड जानेवाला क्षण अा गया….कोई खिंच रहा है भीतर की तरफ..अब बुध्दि भी काम न कर रही…भाषा भी बंद कान भी बंद…बाहर की अावाजे भी बंद….मगर भीतर मै जागा हुअा हू….अब इसी अवस्था को जानते हुए मै….विदा ले रहा हूंं….मगर मै अब भी पूरा हूं…और पूरा ही जा रहा हूं…..और अचानक…….खेल खत्म….।
प्यारे मित्रो यही है सबके जीवन की असली कहानी मगर अभी मौत को किसने जाना है चलो अाज कुछ जाना पहचाना सा रोज का अनुभव ही जानने की कोशिश करते है।
अब हम सभी जानते है की अगर अचानक गहरी नींद से हमे किसीने हडबडी मे जगाया हो तो कभी अाप सभी ने महसूस किया है अचानक नींद से जाग गये गहरी नींद से अचानक जागने के कारण अांख भारी हो गयी है अांख खुल नही रही है भीतर मै कहां हू….किस गांव मे…कीसके घर मे…अभी जागरण पूरा नही भीतर…सारी उर्जा भीतर से बाहर नही अायी है|
एक गहन सुषुुप्ती कितना समय हुअा कितने बजे है कुछ नही पता बस्ससस मै हूं….मै हूं….मै हूं…..बस्सससस….मै बस हूं…..हूं….ये हूं पन मेरा होना,…मेरी बीईंग….मेरा कोरा अस्तित्व,…अभि उर्जा बाहर के जगत मे नही अायी…ये भीतर की स्थिती…यही है हमारा बीईंग..हमारा अस्तित्व…यही है हम…जो हमारी असलियत..हमारा असली होना,…..अब…अब…
अब उर्जा थोडी बाहर के जगत मे अायी..अांखे खुल रही है..अब कुछ घर के भीतर की वस्तुएं दिखाई दे रही है…अब धीरे धीरे…स्थान..जगह का पता चल रहा है….अब मै किस गांव मे हूं…पता चल रहा है….टाईम कीतना हो गया,.समय का पता अब चल रहा है..अभीतक समय का भी पता नही था….यही है स्थल काल से अतीत…समयातीत हमारा होना..हमारा बीईंग.हमारा अस्तित्व…यही हम है..।मगर यह अनुभव बहोत छोटे समय तक रहता है..इसलिए हम पकड नही पाते…अगर इसको पकड पायेंगे…तो इस शरीर से पार हमारा होना है…जिसपर ये सारे अनुभव चल रहै है,..ऐसा ही यह भीतर और बाहर का अाकाश है..जो जिवंत है…सब जान रहा है..यही हल्कीसी जानने की अवस्था हमे साधना मे परमात्मा का अनुभव कराती है…धिरे धीरे…इसके पार चलना है…और भीतर है….वो अानंद का असली स्रोत..असली झरना..जहां सारे रहस्य..अनुभव छुपे पडे है..अानंद के झरने फूटने लगते है..भीतर ही अानंद का खजाना मिल जाता है…अब अागे की यात्रा सद्गुरू करवाते है…अब अागे सद्गुरुकी जरुरत होती है..अब अाकाश मै पदचिन्ह तो नही होते..अब भितर भटकाव भी है सकता है..कुछ अपघात भी हो सकते है..रास्ता अनजाना है..कोई मांझी चाहिए..कोई सारथी केवट जरुरी है|भीतर कभी तो जाना ही होगा अाज नही जाओगे,तो मृत्यू सभी को इस जगह एक दिन लाकर खडा करती ही है उससे पहले यात्रा की रास्ते की पहचान करना समझदारी होगी ना थोडीसी दोस्ती भीतर के अस्तित्व से करनी होगी यही अंत का साथी है तो थोडीसी दोस्ती अभी से करना सीखो कुछ अपने से दोस्ती तो चलो अपने से पहचान करते है अपने को मिलते है यही है ध्यान
यही है सभी की भागदौड हर कोई एक ही चीज ढूंढ रहा है…अानंद…और अानंद के झरने स्वयं के ही भीतर छुपे पडे है..कभी शांत..स्थिर होकर सोचे तो पता चलता है..कि असल मे मुझे चाहिए क्या?बस्स..अनजाने मे यही प्यास छुपी पडी है सबके भीतर..नादानी मे हम कहीं भी ढूंढने लगते है..दुनिया भाग रही है..इसलिए हम भी भागने लगते है।पता ही नही चलता..क्यूं..?बस्सस..ये हमारी असली biology है जीवन की…ढूंढो..ढूंढोगे ते अपने ही भीतर मिल जाएगा जवाब।
ओशो
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