प्रत्येक बच्चा आनंद लेकर पैदा होता है
प्रत्येक बच्चा आनंद लेकर पैदा होता है;
और बहुत कम बूढ़े हैं जो आनंद लेकर विदा होते हैं।
जो विदा होते हैं उन्हीं को हम बुद्ध कहते हैं।
सभी यहां आनंद लेकर जन्मते हैं;आश्र्चर्य विमुग्ध आंखें लेकर जन्मते हैं;
आह्लाद से भरा हुआ हृदय लेकर जन्मते हैं।
हर बच्चे की आंख में झांक कर देखो,नहीं दिखती तुम्हें निर्मल गहराई?
और हर बच्चे के चेहरे पर देखो,
नहीं दिखता तुम्हें आनंद का आलोक?और फिर क्या हो जाता है?
क्या हो जाता है?
फूल की तरह जो जन्मते हैं,
वे कांटे क्यों हो जाते हैं?
जरूर कहीं हमारे जीवन की पूरी शिक्षण की व्यवस्था भ्रांत है।
हमारा पूरा संस्कार गलत है।
हमारा पूरा समाज रुग्ण है।
हमें गलत सिखाया जा रहा है।
हमें सुख पाने के लिए दौड़ सिखाई जा रही है।
दौड़ो!ज्यादा धन होगा तो ज्यादा सुख होगा।
ज्यादा बड़ा पद होगा तो ज्यादा सुख होगा।
गलत हैं ये बातें।
न धन से सुख होता है,
न पद से सुख होता है।
और मैं यह नहीं कह रहा हूं कि धन छोड़ दो या पद छोड़ दो।
मैं इतना ही कह रहा हूं,
इनसे सुख का कोई नाता नहीं।
सुख तो होता है भीतर डुबकी मारने से।हां, अगर भीतर डुबकी मारे हुए आदमी के हाथ में धन हो तो धन भी सुख देता है।अगर भीतर डुबकी मारे हुए आदमी के हाथ में दुख हो तो दुख भी सुख बन जाता है।
जिसने भीतर डुबकी मारी,
उसके हाथ में जादू आ गया,
जादू की छड़ी आ गई।
वह भीड़ में रहे, तो अकेला।
वह शोरगुल में रहे, तो संगीत में।
वह जल में चलता है,
लेकिन जल में उसके पैर नहीं भीगते।
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