जीवन के सब रहस्य उसकी पूर्णता में हैं – ओशो
आज से एक हजार साल पहले सेलवीसियस नाम का एक ईसाई, कैथोलिक फकीर हिंदुस्तान आया। सेलवीसियस बहुत अदभुत आदमियों में से एक था। और बाद में वह कैथोलिक चर्च का पोप बना, हिंदुस्तान से लौटने के बाद। और जितने पोप बने हैं, उनमें सेलवीसियस का मुकाबला नहीं है। सेलवीसियस ने हिंदुस्तान के बहुत-से राज समझने की कोशिश की और हिंदुस्तान की धार्मिक साधना में गहरा उतरा। हिंदुस्तान के फकीरों ने उसे बहुत-सी चीजें भेंट दीं कि तुम ले जाओ।
एक फकीर ने उसे एक चीज भेंट दी, एक तांबे का बना हुआ आदमी का सिर भेंट दिया। वह सिर बहुत अदभुत था। एक बड़ी से बड़ी रहस्य और मिस्ट्री उस सिर के साथ जुड़ी है। उस सिर से कोई भी जवाब हां और न में लिया जा सकता था। उससे कुछ भी पूछें, वह हां या न में जवाब दे देता था। वह था तो सिर्फ तांबे का सिर, आदमी की एक खोपड़ी पर चढ़ाया हुआ। वह अदभुत था। सेलवीसियस ने हजारों तरह के सवाल पूछे और सदा सही जवाब पाए। पूछा कि यह आदमी मर जाएगा कल कि बचेगा? उसने कहा, हां, मर जाएगा, तो मरा। उसने कहा कि नहीं, तो नहीं मरा। न मालूम क्या-क्या पूछा और सही पाया।
सेलवीसियस बड़ी मुश्किल में पड़ गया। उस फकीर ने कहा था, लेकिन एक खयाल रखना, बुद्धि की मानकर कभी इस सिर को खोलकर मत देखना कि इसके भीतर क्या है। लेकिन जैसे-जैसे सेलवीसियस को उत्तर मिलने लगे, वैसे-वैसे उसका मन बेचैन होने लगा। उसकी रात की नींद खो गई। उसको दिनभर चैन न पड़े। कब इसको खोलकर देख लें, तोड़कर, इसके भीतर क्या है!
वह बामुश्किल हिंदुस्तान से जा पाया। रोम पहुंचते ही उसने पहला काम यह किया कि उसको तोड़कर, उसको खोलकर देख लिया। उसके भीतर तो कुछ भी न था। एक साधारण खोपड़ी थी। कुछ भी न मिला।
सेलवीसियस बहुत दुखी और परेशान हुआ। आज भी उस सिर के टुकड़े, टूटे हुए, वेटिकन के पोप की लाइब्रेरी में नीचे दबे पड़े हैं; आज भी। और भी बहुत-सी चीजें वेटिकन की लाइब्रेरी में दबी पड़ी हैं, जो कभी बड़ी काम की सिद्ध हो सकती हैं। सेलवीसियस बहुत रोया, बहुत पछताया, बहुत जोड़ने की कोशिश की। सब जोड़ा-जाड़ा। लेकिन जवाब फिर न आया।
बुद्धि तत्काल चीजों को तोड़कर देखना चाहती है कि भीतर क्या है। लेकिन भीतर जो भी है, वह सिर्फ जुड़े हुए में होता है, टूटे में नहीं होता। जिस चीज को भी हम तोड़ लेते हैं, उसकी होलनेस, उसकी पूर्णता नष्ट हो जाती है। और जीवन के सब रहस्य उसकी पूर्णता में हैं।
इसलिए विज्ञान कभी जीवन के परम रहस्य को उपलब्ध न हो पाएगा। क्योंकि विज्ञान की पूरी प्रक्रिया तोड़ने की है, एनालिसिस की है, विश्लेषण की है। चीजों को तोड़ते चले जाओ। इसलिए एटम तो मिल गया; आत्मा नहीं मिलती। एटम मिल जाएगा; वह तोड़ने से मिलता है। आत्मा नहीं मिलती; वह जोड़ने से मिलती है। विद्युत के कण मिल जाएंगे, इलेक्ट्रांस मिल जाएंगे, लेकिन परमात्मा नहीं मिलेगा। इलेक्ट्रांस तोड़ने से मिलते हैं; परमात्मा जोड़ने से मिलता है।
कृष्ण बड़े से बड़े जोड़ की बात कर रहे हैं। वे कह रहे हैं, अंधेरा और प्रकाश मैं ही हूं। जीवन और मृत्यु मैं ही हूं। सृष्टि और प्रलय मैं ही हूं। और जो सब भूतों में मुझे देखता है, वह एक दिन अंधकार में–उसमें भी, जो अप्रीतिकर मालूम पड़ता है–मुझे देख पाएगा।
और जिस दिन अप्रीतिकर में भी परमात्मा दिखाई पड़ता है, उस दिन क्या अप्रीतिकर बचता है? मेरा यह हाथ किसी को सुंदर मालूम पड़ सकता है। इस हाथ को तोड़कर सड़क पर डाल दें, फिर यह बिलकुल सुंदर नहीं मालूम पड़ेगा; बहुत कुरूप हो जाएगा। आपकी आंख किसी को सुंदर मालूम पड़ सकती है; निकालकर टेबल पर रख दें, तो दूसरा आदमी आंख बंद कर लेगा कि यह न करिए।
क्या, बात क्या है? आंख सुंदर होती है, जब शरीर की पूर्णता में होती है; अलग होकर कुरूप हो जाती है। हाथ सुंदर होता है, जब शरीर की पूर्णता में होता है; अलग होकर सिर्फ गंदगी और दुर्गंध फैलाता है।
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