मौत धर्म की जन्मदात्री है।
नचिकेता के बाप ने बड़ा यज्ञ किया है। और वह बांट रहा है यज्ञ के बाद ब्राह्मणों को। नचिकेता बैठा है—छोटा सा नचिकेता! जरा सा बच्चा है। जिज्ञासाएं उसे उठती हैं। छोटा बच्चा है। बाप तो पुराना घाघ है, अनुभवी आदमी है, चालाक, चतुर है। बेटा तो निष्कपट है, सरल—चित्त है।
वह बाप की बेईमानियां देख रहा है वहीं बैठा—बैठा। बाप ऐसी गाएं ब्राह्मणों को दे रहा है, जिनका दूध कई दिन पहले ही समाप्त हो गया है। वह नचिकेता को पता है। वह कहता है: पिताजी, ये गाएं किसलिए दे रहे हैं? इनमें दूध इत्यादि तो है ही नहीं। बाप को बड़ी नाराजगी होती है, क्योंकि वे ब्राह्मण भी सुन रहे हैं।
बेटे अक्सर पोल खोल देते हैं। वह वहीं बैठा है। और वह कहता है कि यह गाय तो बिलकुल मरी—मराई है, इसमें कुछ नहीं है। यह ब्राह्मणों को उलटा घास—पात इसको खिलाना पड़ेगा। पिताजी, आप यह क्या कर रहे हैं? यह कैसा दान? कुछ मतलब की चीज दो!
बाप गुस्से में आ जाता है। और वह पूछता ही चला जाता है। बाप कहता है कि मैं सब दान कर दूंगा। कुछ भी बचाऊंगा नहीं। महादानी होना चाहता हूं।
तो बेटा कहता है: पिताजी, मैं भी तो आपका हूं, मुझे भी दान कर देंगे क्या? यह बात बड़ी कीमत की पूछता है वह। क्योंकि हम तो व्यक्तियों पर भी परिग्रह कर लेते हैं।
तुम कहते हो: पत्नी—मेरी पत्नी! पति—मेरा पति। जैसे कि पति—पत्नी कोई संपत्ति है! मगर यही चलता रहा है।
“स्त्री—संपत्ति’ ऐसा शब्द है हमारे पास। नारी—संपत्ति! बेहूदे शब्द हैं, कुरूप शब्द हैं। भाषा से चले जाने चाहिए। अपमानजनक हैं। क्योंकि कोई स्त्री तुम्हारी संपत्ति कैसे हो सकती है?
बाप बेटी का विवाह करता है तो कहता है: कन्या—दान! हद हो गई पागलपन की! दान कर रहे हो? जीवंत आत्माएं दान की जा सकती हैं?
तुम हो कौन दान करने वाले? यह आत्मा तुम्हारी नहीं है, तुम से आई हो भला। तुम रास्ते बने थे इसके आने में। मगर यह आती तो परमात्मा से है, तुम्हारी नहीं है। तुम दान कर रहे हो! एक आत्मा पैदा करके तो बताओ, फिर दान करना।
जो पैदा कर सको, उसके मालिक तुम हो सकते हो; लेकिन जो तुम पैदा नहीं कर सकते उसके मालिक कैसे? और तब तो मालकियत किसी चीज की नहीं हो सकती। गाय तुम पैदा कर सकते हो, कि वृक्ष तुम पैदा कर सकते हो, कि जमीन तुम पैदा कर सकते हो? क्या तुम पैदा कर सकते हो? यहां जो भी मूल्यवान है, जीवंत है—कुछ भी पैदा नहीं किया जा सकता। तुम मुफ्त में दावेदार बन जाते हो।
तो नचिकेता ने पूछा कि पिताजी, आप सदा कहते हैं कि मैं आपका हूं। तो, तो झंझट खड़ी हुई, आप मुझको भी दान कर देंगे क्या? आप कहते हैं, जो आपका है, सब दान कर देंगे।
बाप तब तक बड़े गुस्से में आ गया था। उसने कहा: हां, दान कर दूंगा। तुझे मृत्यु को दे दूंगा। और नचिकेता जिद्द करने लगा कि फिर कब देंगे मृत्यु को? तो बाप ने कहा: तू जा, मृत्यु का यह मार्ग रहा। खोज मृत्यु को। मैंने तुझे दे दिया।
और नचिकेता गया। मृत्यु के द्वार पर तीन दिन बैठा रहा, क्योंकि मृत्यु के देवता बाहर गए थे। गए होंगे लेने लोगों को—कहीं मलेरिया होगा, कहीं प्लेग होगी। गए होंगे डाक्टरों से जूझने।
मृत्यु—देवता की पत्नी ने बहुत समझाया। छोटा सा बच्चा। भोजन कर ले, पानी पी ले। उसने कहा: कुछ भी नहीं। पहले मृत्यु—देवता से मिलूंगा।
और तीन दिन बाद मृत्यु के देवता आए। और बहुत खुश हुए इस बच्चे की निष्ठा से। इसकी सरलता से भी। यह अपने बाप से ज्यादा सरल साबित हुआ।
और अदभुत साहस वाला है कि बाप ने तो क्रोध में कहा था मृत्यु को देता हूं, यह चला ही आया। इसने मान ही लिया। इसने ना—नुच भी न की। इसने न कहा: मैं न मरूंगा, मैं नहीं मरना चाहता। ऐसा भी न कहा। इसने कहा: ठीक है, जब पिता कहते हैं मृत्यु तो मृत्यु! जब दान कर दिया तो कर दिया।
और मैं तीन दिन बाहर था तो इसने पानी भी न लिया और भोजन भी न लिया। तो बहुत मृत्यु के देवता उसकी सरलता, निष्कपटता, साहस, अदम्य साहस से प्रभावित हुए। उन्होंने कहा: तू तीन वरदान मांग ले। तू जो चाहे मांग ले।
लेकिन उसने कहा कि मुझे तो सिर्फ एक बात जाननी है, कि मरने के बाद क्या होता है? मृत्यु के बाद क्या होता है? कोई बचता है कि नहीं बचता है?
बहुत समझाया मृत्यु के देवता ने: तू यह ले ले, तू वह ले ले, धन ले ले, घोड़े ले ले, रथ ले ले, सारा साम्राज्य ले ले पृथ्वी का।
उसने कहा: क्या करूंगा, क्योंकि एक दिन मौत आएगी और आप सब छीन लेंगे। आप किससे कह रहे हैं यह बात? आप ही कह रहे हैं! अभी दे देंगे, थोड़े दिन भुलावा रहेगा, फिर मौत आएगी, फिर छीन लेंगे। मैं तो असली बात जानना चाहता हूं कि मौत के बाद क्या होता है?
मुझे तो जीवन का वह परम राज बता दें। सब मिट जाता है या कुछ बचता है? जो बचता है, वह क्या है? वह अमृत क्या है? बस मैं उसी को जानना चाहता हूं। वही संपत्ति, वही साम्राज्य। देना हो तो वही दे दें।
ऐसा कठोपनिषद चलता है। यह बड़ी गहन कथा है। इस कथा का रहस्य यही है कि नचिकेता गुरु के पास गया है। आचार्यो मृत्युः! यदि आचार्य मृत्यु है, तो फिर मृत्यु ही आचार्य है।
और तुम यही जानना कि दुनिया में सारे धर्मों का जन्म मृत्यु के कारण हुआ है। मृत्यु से हुआ है। वही सदगुरु है।
अगर मृत्यु न हो तो धर्म विलीन हो जाएंगे। अगर तुम मरो न, कभी न मरो, तो तुम बुद्ध की सुनोगे, कि महावीर की, कि कृष्ण की, कि राम की, किसकी सुनोगे? तुम किसी की न सुनोगे। तुम कहोगे: हटाओ बातचीत!
सदा यहां मजे से रहना है, कहां की बातें कर रहे हो? स्वर्ग यहीं बनाएंगे। अभी भी कहां सुनते हो। सत्तर साल रहना है तो भी स्वर्ग बनाने की कोशिश करते हो। और अगर सदा रहना होता, तब तो तुम कैसे सुनते! अभी तो मौत तुम्हें डरा देती है, मौत तुम्हें कंपा देती है। तो जैसे—जैसे बूढ़े होने लगते हो, थोड़ा—थोड़ा सुनने लगते हो कि शायद कुछ मतलब की बात हो, सुन लें, अब मौत करीब आ रही है।
इसलिए देखते हैं, मंदिर—मस्जिद में बूढ़े और बूढ़ियां दिखाई पड़ते हैं! जवान वहां नहीं जाते। जवान वहां जाएं क्यों?
जवान अभी लड़खड़ाया नहीं है। अभी मौत ने धक्का नहीं दिया। अभी होने दो एकाध हार्ट—अटैक, बढ़ने दो ब्लड—प्रेशर। होने दो कोई खतरा। पैर कंपने दो, हाथ में कंपन आने दो, घबड़ाहट आने दो, मौत का पहला झोंका आने दो। तब यह जाएगा मंदिर। तब यह राम—राम जपेगा। तब यह माला फेरेगा।
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