अपने जीवन मै कभी बीच का रास्ता न अपनाए – सद्गुरु जग्गी वासुदेव
अगर आप अभी मौजूदा चीजों के साथ जुड़ जाते हैं और जो नहीं है, उसकी कल्पना नहीं करते, तो फिर आपके भीतर डर की कोई गुंजाइश ही नहीं बचेगी। आप जीवन का भरपूर आनंद तभी ले सकते हैं।
आप अपने जीवन के साथ जो सबसे बड़ा अपराध कर सकते हैं, वह है – एक औसत दर्जे की जिंदगी जीना। इस तरह से जीवन जीकर आप जीवन के किसी भी छोर को नहीं छूते, न तो आप अपनी सर्वश्रेष्ठ क्षमता तक पहुंच पाते हैं और न ही सबसे नीचे के बिन्दु को छू पाते हैं। आप इन दोनों के बीच में ही कहीं भटकते रहते हैं। लोगों को लगता है कि जीवन जीने का यह एक सुरक्षित तरीका है। लेकिन इस तरह के जीवन में आप जो भी कदम उठाते हैं, वह अधूरा ही होता है। न तो आप जिंदगी में खुलकर हंस पाते हैं और न खुलकर रो पाते हैं। न तो मस्ती और बेफिक्री के साथ नाच सकते हैं, न गा सकते हैं। आप पूरी तरह से खुलकर कुछ भी नहीं कर पाते।
आपने बीच का रास्ता इसलिए चुना, क्योंकि इस रास्ते में एक सुरक्षा का भाव है। अगर आप भीड़ के बीच में खड़े हों, तो आप सुरक्षित होते हैं। लेकिन भीड़ के सबसे आगे या पीछे खड़े होने में आपको हालात का सामना करना पड़ता है। लोगों ने इस मध्यम मार्ग को एक सुनहरे मार्ग के रूप में समझने की भूल कर ली है। यह सुनहरा मार्ग बिल्कुल नहीं है, बल्कि यह तो आपका डर है, आपके भीतर असुरक्षा की भावना है।
एक बार एक छोटा बच्चा अपनी मां के पास गया और बोला, ‘मां मैं नदी में जाकर तैरना चाहता हूं।’ मां गुस्से में बोली, ‘तुम्हारे वहां जाने का सवाल ही नहीं उठता। तुम नदी में नहीं जाओगे, वह नदी खून के प्यासे भयानक मगरमच्छों से भरी पड़ी है। खबरदार, जो तुमने कभी नदी में पांव भी डाला।’
‘लेकिन मां, पिताजी तो रोज सुबह नदी में तैरने जाते हैं।’
मां ने जवाब दिया, ‘तुम उनकी चिंता मत करो। उन्होंने सुरक्षा बीमा ले रखा है।’
सुरक्षा आपको कैद कर लेती है
बीमा आपके जीवन में सुरक्षा लेकर नहीं आता। यह तो मुसीबत के वक्त में मदद के लिए है। एक बंद दरवाजा सुरक्षा की निशानी नहीं है। लेकिन कुछ परिस्थितियों को नियंत्रित करने के लिए हम दरवाजा बंद करते हैं। लेकिन कोई भी दरवाजा केवल तभी तक दरवाजा होता है, जब आप उसे अपनी इच्छा अनुसार खोल या बंद कर सकते हों। अगर कोई दरवाजा हमेशा बंद रहता हो, तो आप उसे दरवाजा नहीं कह सकते। तब वह एक दीवार होगा।
जीवन में आपके पास थोड़ा-बहुत जो कुछ भी है, उसे लेकर आप ठोस हो गए हैं, बजाय इसके कि आप तरल होकर बहते रहते। इससे आपकी जिंदगी में एक ठहराव आ गया है। एक तरह से आप अनिश्चय की स्थिति में हैं। देखिए, अगर आप जीवन भरपूर तरीके से जीते हैं, और फिर मर जाते हैं तो यह ठीक है। लेकिन अनिश्चय की स्थिति में, न तो आप जी रहे हैं और न ही मरे हुए हैं। ऐसे में जब आपकी मृत्यु आएगी तो आपको महसूस होगा कि आप अपना जीवन भरपूर जिए बिना ही मर रहे हैं। यह एक त्रासदी होगी।
अपने जीवन में आपको यह तय करना होगा कि आप यहां जीवन का अनुभव करने आए हैं या फिर जीवन से बचने। अगर आप यहां जीवन का अनुभव करने के लिए आए हैं, तो इसके लिए जिस चीज की सबसे ज्यादा जरूरत है, वह है – तीव्रता। अगर आपके भीतर तीव्रता नहीं होगी, तो आप बहुत ही छोटे स्तर पर जीवन का अनुभव कर पाएंगे। जैसे ही आप अपने डर को अपनी सुरक्षा के रूप में इस्तेमाल करते हैं, आपकी तीव्रता कम हो जाती है। एक बार अगर तीव्रता कम हो गई तो फिर जीवन का अनुभव करने की क्षमता भी चली जाएगी। तब आप एक मनोवैज्ञानिक केस बन कर रह जाते हैं।
डर सिर्फ भविष्य को लेकर होता है
आप इस बात पर जरा ध्यान दें कि आखिर आपका डर किस बात को लेकर है। आप का डर उस बात के लिए नहीं होता, जो घटित हो चुका होता है बल्कि ‘क्या हो सकता है’ इसे लेकर आप डरते हैं। यानी आपका डर हमेशा भविष्य को लेकर होता है। लेकिन भविष्य तो अभी होना है, यह अभी घटित नहीं हुआ है। इसका मतलब है कि फिलहाल इसका कोई अस्तित्व नहीं है। फिर भविष्य को लेकर डरने का मतलब है कि आप उस चीज से पीडि़त हो रहे हैं, जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं है। जो चीज अभी है ही नहीं, आप उससे डर रहे हैं, ऐसे में हम आपको पागल कहें या समझदार? आपके लिए एकमात्र सुकून की बात यह है कि आपके साथ बहुत से लोग है। लेकिन बहुमत होने से ही आप सही नहीं हो जाते, क्योंकि आप ऐसी चीज़ से परेशान हैं, जिसका अस्तित्व ही नहीं है।
डर जीवन की देन नहीं है। डर भ्रमित मन की उपज है। जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं है, आप उस चीज से इसलिए डरते हैं, क्योंकि आपकी जड़ें वास्तविकता की जमीन में नहीं धंसी हैं, बल्कि वे आपके मन में धंसी हैं, जो लगातार अतीत से ताकत पा रहा है और भविष्य को गंदा कर रहा है। वास्तव में आप भविष्य के बारे में कुछ नहीं जानते। आप अतीत का एक टुकड़ा लेकर उसे झाड़ पोंछकर उसे थोड़ा सजाकर सोचते हैं कि यह भविष्य है।
भरपूर जीवन जीया तो मरना सार्थक होगा
आप अपने भविष्य के बारे में योजना तो बना सकते हैं, लेकिन आप भविष्य में रह नहीं सकते। लेकिन फिलहाल लोग अपने भविष्य में रह रहे हैं और यही वजह है कि उनमें डर बैठा हुआ है। इसको लेकर अगर आप कुछ कर सकते हैं तो बस इतना कि आप वास्तविकता के धरातल पर उतरिए। अगर आप अभी मौजूदा चीजों के साथ जुड़ जाते हैं और जो नहीं है उसकी कल्पना नहीं करते, तो फिर आपके भीतर डर के लिए कोई गुंजाइश ही नहीं बचेगी। तभी आप जीवन का आनंद ले सकते हैं।
आप इस बात पर ध्यान दें और फिर देखें कि आपके साथ क्या होता है? ज्यादा से ज्यादा क्या होगा? आप मर जाएंगे, उससे ज्यादा कुछ नहीं होगा। मरने से पहले कम से कम जी तो लीजिए, क्योंकि मरना तो आप को हर हाल में है। हम सब अपने लिए मौत की कामना नहीं कर रहे हैं। हम सब कई साल जिंदा रहने की योजना बना रहे हैं, लेकिन वास्तव में जीवन की कोई सुरक्षा नहीं है। सवाल बस इतना है कि आपने यह जीवन कितने गरिमापूर्ण ढंग से और कितनी आजादी के साथ जिया। अगर आपने भरपूर जीवन जिया, तो फिर मरना सार्थक है। वरना जीवन ही नहीं, बल्कि मृत्यु भी एक पछतावा होगा।
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